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दिल्ली मुख्य सचिव के एक्सटेंशन में न्यायिक विरोधाभास


प्रसंग: दिल्ली के मुख्य सचिव के विस्तार पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश न्यायिक आत्म-हत्या और संवैधानिक वैधता के बारे में चिंता पैदा करता है।

हालिया फैसले से जुड़े मुद्दे

  • सेवा निर्णय के साथ विरोधाभास: दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार को छह महीने के विस्तार की अनुमति देने वाला सुप्रीम कोर्ट का नवंबर 2023 का फैसला कोर्ट के पहले के सेवा फैसले के विपरीत है, जिसने दिल्ली सरकार को संविधान के अनुच्छेद 239एए के तहत सेवाओं पर नियंत्रण प्रदान किया था।
  • रोयप्पा मामले की अनदेखी: अदालत रोयप्पा मामले पर विचार करने में विफल रही, जिसमें मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के बीच तालमेल की आवश्यकता और निर्वाचित सरकार के निर्देशों का पालन करने वाले मुख्य सचिव के महत्व पर जोर दिया गया था।
  • “पूर्ण औचित्य” और “सार्वजनिक हित” का अभाव: मुख्य सचिव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और दिल्ली सरकार के विरोध के बावजूद यह विस्तार दिया गया।
  • केंद्र द्वारा एकतरफा विस्तार: केंद्र ने दिल्ली सरकार की सिफारिश के बिना सेवाओं पर उनके नियंत्रण को कमजोर करते हुए एकतरफा कार्यकाल बढ़ा दिया।

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पूर्व व्याख्या

  • सेवा निर्णय (मई 2023): दिल्ली में सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है।
  • रोयप्पा मामला: मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री के साथ तालमेल रखना चाहिए और निर्वाचित सरकार के निर्देशों का पालन करना चाहिए।

फैसले का प्रभाव

  • लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को कमजोर करना: इस फैसले को निर्वाचित सरकार के नियंत्रण और जवाबदेही को कमजोर करके दिल्ली के प्रशासन के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने के रूप में देखा जा रहा है।
  • जवाबदेही का क्षरण: केंद्र सरकार को मुख्य सचिव के कार्यकाल को एकतरफा बढ़ाने की अनुमति देकर, यह निर्णय लोकतांत्रिक शासन के लिए आवश्यक जवाबदेही की श्रृंखला को बाधित करता है।
  • शासन में संभावित अविश्वास: एकतरफा विस्तार से निर्वाचित सरकार और नौकरशाही के बीच अविश्वास कायम हो सकता है, जिससे समग्र शासन प्रभावित होगा।
  • स्थापित कानूनी सिद्धांतों से विचलन: लेख में तर्क दिया गया है कि निर्णय स्थापित कानूनी सिद्धांतों और न्यायालय के अपने अतीत के ज्ञान से भटक गया है, जो संवैधानिक तर्क के पालन पर सवाल उठाता है।

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